Thursday, May 6, 2010

फियादीन को मौत की सजा से कितना फर्क पड़ेगा

कसाब को आख़िरकार मौत की सजा सुना दी गई। भारत मैं इसको लेकर ख़ुशी की लहर हर जगह व्याप्त है जो की होना भी चाहिए। लेकिन बड़ा सवाल ये है की आखिर एक आत्मघाती दस्ते के आदमी

Wednesday, May 5, 2010

श. श. श. अब्बा स्लीपिंग...


बेटों और भतीजों के कारण मुसीबत में आने वाले नागेंद्र सिंह अकेले मंत्री नहीं हैं। इसके पूर्व भी भाजपा सरकार के कई मंत्री अपने बेटों की करतूतों के कारण तकलीफ में आ चुके हैं। पूर्व राजस्व मंत्री कमल पटेल के बेटे संदीप पर तो हत्या का मामला दर्ज है और सीबीआई इसकी जांच कर रही है।संदीप पर आरोप है कि मार्च 2008 में उसने अपने दोस्तों के साथ हरदा के कांग्रेस नेता राजेंद्र पटेल के लड़के गजेंद्र की हत्या कर दी थी। उस समय यह मामला काफी चर्चा में रहा था। नवंबर 2008 में हाईकोर्ट के आदेश के बाद प्रकरण सीबीआई को सौंप दिया गया।तत्कालीन गृहमंत्री के बेटे ने पीटा था थानेदार को: विधायक रामदयाल अहिरवार जब गृह राज्यमंत्री थे, तब उनके बेटे लक्ष्मी अहिरवार पर भी मारपीट का आरोप लगा था। लक्ष्मी पर आरोप था कि जून 2007 में उन्होंने महाराजपुर के थानेदार की पिटाई कर दी थी। इस मामले में उनके खिलाफ केस दर्ज भी हुआ था।यह भी आए विवादों में: आदिम जाति कल्याण मंत्री विजय शाह के बेटे भी सात माह पूर्व विवाद में फंस चुके हैं। इंदौर स्थित उनके बंगले के पास एक लड़की शराब की बेहोशी में मिली थी। इस मामले में कोई एफआईआर दर्ज नहीं हुई थी। आवास एवं पर्यावरण मंत्री जयंत मलैया के बेटे पर भी विधानसभा चुनाव के दौरान मारपीट करने के आरोप लगे थे, लेकिन पुलिस में कोई केस दर्ज नहीं हुआ। इसके अलावा पूर्व मंत्री कैलाश चावला के बेटे रिप्पी चावला पर भी स्थानीय कांग्रेस नेताओं के साथ मारपीट के आरोप लगते रहे हैं।

सच को छुपाकर आखिर हासिल क्या होगा....


दिल्ली सरकार की एक मुहिम के तहत सड़कों से भीख मांगने वालों को हटाया जा रहा है. ऐसा इसलिए क्योंकि अक्टूबर में होने वाले राष्ट्रमंडल खेलों के लिए दिल्ली में जो विदेशी मेहमान हमारे देश की राजधानी में आए तो उन्हें एक साफ़, स्वच्छ और चमकते-दमकते शहर के रूप में दिल्ली दिखाई दे । मालूम हो दिल्ली की सड़कों पर क़रीब 60,000 भीख मांगने वाले हैं। इन्हें सडको से हटाने के लिए दिल्ली पुलिस ने 13 ऐसे दल बनाए गए हैं जो भीख मांगने वालों को पकड़कर कोर्ट के सामने पेश कर रहे हैं। इसमें कुछ को चेतावनी देकर छोड़ दिया जाता है तो कुछ को सज़ा भी सुनाई जा रही है जिसके तहत उन्हें भिक्षुगृह भेज दिया जाता है। सवाल यह है की आखिर सरकार को आज इन लोगो की याद क्यों आ रही है। वजह सब जानते है लेकिन क्या ऐसा नहीं लगता की इन्हें सडको से हमेश के लिए हटाया जाने को लेकर प्रयास करना चाहिए था या फिर सोचना था? हो सकता है पुलिस के डंडो और किये जाने वाले अभद्र व्यवहार से बचने के चलते भीख मागने वाले सड़क से हट भी जाए लेकिन इस सच को छुपाकर आखिर सरकार को हासिल क्या होगा। शायद सरकार ये भूल गई है की ये वो लोग होते है जिनका कोई ठिकाना नहीं होता, दो वक़्त की रोटी बमुश्किल से नसीब होती है। कहने को हमारे देश में भीख मांगने पर प्रतिबंद है लेकिन आज तक इस को लेकर जब किसी भी प्रदेश की सरकार ने कोई कदम नहीं उठाया तो आज दिल्ली सरकार क्यों इस सच्चाई से मुह छुपाना चाहती है। होना ये चाहिए की सरकार को भिखारिओ के पुनर्स्थापना के बारे में सोचना चाहिए।

Monday, May 3, 2010

तो मध्यप्रदेश की जेल मैं बंद हो सकते है पत्रकार

आज कोलम्बो से कबर आई की सामाजिक वैमनस्य भड़काने के आरोप में 20 वर्ष की सजा काट रहे एक तमिल पत्रकार को श्रीलंका के राष्ट्रपति ने क्षमा कर दिया है। विदेश मामलों के मंत्री जी.एल.पेइरेस ने सोमवार को कहा कि तमिल समुदाय के जे एस तिसाइनयागम को पिछले वर्ष आतंकवाद निरोधक कानून के तहत सजा दी गई थी। मामला साफ़ नहीं हो पाया है की उस पत्रकार ने आखिर किया क्या था। वो गुनागार था या नहीं। लेकिन एक बाद साफ़ है कुछ ऐसा ही हाल मध्यप्रदेश के पत्रकारों के साथ भी हो सकता है। वजह है सरकार की तरफ से निकला नया फरमान जिसके तहत यदि कोई पत्रकार किसी नक्सली या देश मैं विद्रोह फेलाने वाले किसी भी व्यक्ति का इंटरव्यू लेते है तो नए कानून के मुताबिक उसे सजा हो सकती है। बात यदि प्रेस की स्वतंत्रा की होती है तो ऐसे मैं ये नया फरमान आखिर क्यों। हेरानी की बात ये है की कोई भी पत्रकार इस मामले को लेकर कोई बहस क्यों नहीं कर रहा है।

पत्रकार की नहीं स्वतंतत्रा की मौत है ये...

झारखंड की पत्रकार निरुपमा पाठक की मौत का रहस्य आज भी कायम है। मीडिया, पुलिस और सभी लोग कह रहे है की ये हत्या का मामला है। क्योकि निरुपमा एक दूसरे जाती के लड़के प्रियभान्शुसे प्यार करती थी। तेईस वर्षीया पत्रकार निरुपमा पाठक दिल्ली के एक समाचार पत्र में काम करतीं थीं. उन्हें 29 अप्रैल को झारखंड में उनके कोडरमा स्थित निवास में मृत पाया गया था। पोस्टमार्टम की रिपोर्ट के अनुसार निरुपमा की मौत दम घोंटे जाने से हुई है। मामला सभी मीडिया ने उठाया क्युकी मौत एक पत्रकार की हुई थी। वरना देश में हर दिन हजारो लडकिया इसी तरह या तो मारी जाती है या खुद ही अपनी जीवन लीला समाप्त कर देती है। सवाल यह है कि इस बार निरुपमा कि मौत हुई है या आज़ाद हिंदुस्तान कि उस स्वतंत्रा को एक बार फिर मारा गया है जिसे आज भी कई जगह हिंदुस्तान कि आवाम लडकियों के मामले में स्वीकार नहीं करती है।

इतना समय आखिर क्यों ?

मोहम्मद अजमल कसाब एक ऐसा नाम जिसका जिक्र आते ही हर हिन्दुस्तानी के मन मैं बस एक ही सवाल आता है की आखिर कसाब को सजा सुनाने मैं इतनी देर क्यों हुई। 26 नवम्बर 2008 का वो दिन शायद ही कोई भूल पाए। 3 मई को आखिर मुंबई हमले के एकमात्र जीवित आरोपीi अजमल कसाब को कोर्ट ने सभी 12 मामलों में दोषी करार दिया है। जबकि अन्य दो आरोपी फहीम अंसारी और सबाउद्दीन को बरी कर दिया गया है। कसाब पर मुख्य रुप से देश के खिलाफ जंग छेड़ने का आरोप था। लोगों की हत्या करने का मामला दर्ज था। विस्फोटक सामग्री को देश में लाने का मामला था। करकरे, कामटे और सालस्कर की हत्या का दोषी था। मुंबई के तट पर कुल 10 आतंकी उतरे थे।10 आतंकियों में से एक कसाब भी था, बाकी 9 मारे गए थे।मुंबई में घुसे आतंकियों ने अपने आपको विद्यार्थी बताया गया था।सभी 20 से 25 वर्ष के थे। कसाब पर भारत के ख़िलाफ़ युद्ध छेड़ने, 166 लोगों की हत्या में शामिल होने समेत 86 आरोप तय किए गए हैं। कसाब और मारे गए उसके नौ सहयोगियों पर लश्करे तैबा के इशारे पर 166 लोगों की हत्या और 304 को घायल करने का आरोप है। इस हमले में 25 विदेशी भी मारे गए थे। पाकिस्तान के नागरिक कसाब के अलावा दो भारतीयों, फहीम अंसारी और सबाउद्दीन अहमद पर भी हमले की साजिश रचने का आरोप है। भारतीय नागरिकों पर आरोप है कि उन्होंने निशाना बने स्थानों का नक्शा तैयार कर उन्हें लश्करे तैबा को सौंपा था।
और उसे ही गोली से उड़ा दिया कसाब ने-
26/11 हमले में जीटी अस्पताल में सफाईकर्मी ठाकुर ने कसाब को कांपते हाथों से पानी पिलाया। आतंकी ने इसे तपाक से पी लिया। फिर उसने बेरहमी से उस पर गोली चलाई।
कसाब से मामले से जुड़े तथ्य
- पिछले साल अप्रैल में जब मुक़दमे की कारवाई शुरू हुई तो कसाब के ख़िलाफ़ 86 अलग-अलग आरोप लगाये गए, जिनमें भारत के ख़िलाफ़ युद्ध और हत्या के इल्ज़ाम सब से अहम थे.
- मुक़दमे के लिए एक विशेष अदालत का गठन किया गया और मुंबई की आर्थर रोड जेल के अन्दर अदालत बिठाई गई। सुरक्षा के कड़े इंतज़ाम किए गए. इन सब में सरकार ने काफ़ी पैसे ख़र्च किए.
- मुक़दमे के दौरान 600 से अधिक गवाहों को अदालत में पेश किया गया.
मुक़दमे में कई ड्रामाई मोड़ आए। शुरू में ही कसाब ने दावा किया की वो नाबालिग़ है। यह दावा ग़लत पाया गया।
-जुलाई में अभियुक्त कसाब ने अचानक अपना ज़ुर्म क़ुबूल कर लिया और जज से फांसी पर लटका देने को कहा। लेकिन जज ने उसकी दरख़्वास्त रद्द कर दी और मुक़दमा जारी रहने के आदेश दिए.
-कसाब के इस रवैये पर सरकारी वकील उज्जवल निकम ने उसे अभिनेता और नाटकबाज़ जैसे नाम दिए.
- मुकदमे में अगला नाटकीय मोड़ उस समय आया जब कसाब के वकील अब्बास काज़मी को जज ने केस से बाहर कर दिया. जज का कहना था की काज़मी मुक़दमे की कार्रवाई में देरी करके इसे तूल देना चाहते हैं.
-बाद में काज़मी ने बीबीसी से एक बातचीत में दावा किया कि जज ने उन्हें झूठा कहा और सरकारी वकील ने उन्हें आतंकवादी का वकील कहा. उन्होंने यह भी शिकायत की कि अदालत का माहौल उनके ख़िलाफ़ था.
-पाकिस्तान ने आख़िर ये मान लिया कि कसाब उसका ही नागरिक है। पाकिस्तान ने यह भी स्वीकार किया कि मुंबई पर हुए हमलों में कुछ हद तक पाकिस्तानी नागरिक शामिल हो सकते हैं.
काज़मी की जगह उनके जूनियर वकील पवार को कसाब का वकील घोषित किया गया.
- आख़िर मार्च में मुक़दमा ख़त्म हुआ. जज को कसाब के ख़िलाफ़ किसी फ़ैसले पर पहुँचने के लिए एक महीने से अधिक समय मिला है.